"शब्दों की हेराफेरी"
"शब्दों की हेराफेरी"
रानी भरें पानी, दासी करें आराम....!
फक़ीर बैठे सिंहासन पर, राजा बेच रहा है आम....!!
काँटे महक रहें है गुलाब बनकर....!
श्याम थिरक रहें है राधा बनकर....!!
अपनी मुठ्ठी में चाँद तारों को छुपाया है....!
गागर में सागर भी आज समाया है....!!
जमीं सोच रही है बन जाऊं, मैं आसमान....!
गिरगिट कहता है, सभी इंसान है मेरे समान....!!
आओ नीम के मीठे पत्ते खाते है....!
मन की कड़वाहट को मिटाते है....!!