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प्रवीण कुमार सोलंकी

Abstract Fantasy Others

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प्रवीण कुमार सोलंकी

Abstract Fantasy Others

सोचो अगर हवा न चलती, ये दुनिया फिर कैसे पलती

सोचो अगर हवा न चलती, ये दुनिया फिर कैसे पलती

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सोचो अगर हवा न चलती 

ये दुनिया फिर कैसे पलती।

जीवों का तो वजूद ही ना होता 

ना सांसे चलती, ना संसार होता।

फ़िल्मी गीतकार तो परेशां हो जाते 

हवा ही ना चलती तो क्या लिख पाते।

हिंदी मुहावरे फिर कैसे गढ़े जाते 

हवाई किले तो फिर जमीनी रह जाते।

सावन के महीने में, सावन कैसे करता शोर 

हवा चलती ही नहीं, सावन हो जाता बोर।

तूफान और बवंडर तो गुमनाम हो जाते 

हवा ही ना चलती, तो कहाँ से आते

पतंगों के कारोबार तो बंद हो जाते 

हवा ही ना चलती तो क्या उड़ाते।

हवा में उड़ने का सपना ही नहीं आता 

ना ही पंछी बनने को मन ललचाता।



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