तुम्हारी आँखों से..
तुम्हारी आँखों से..
सुना है माहिर हो मोल भाव करने को
मैं तैयार बैठा हूँ बाजार में गिरने को
तुम्हारी अदाएं कातिलाना है तो फिर
मैं रजामंद हूँ, तुम्हारी आँखों से मरने को
तुम्हारी आँखों में काजल का
घना अंधेरा भी अच्छा लगता है
तुम्हारे सिर्फ एक इशारे पे
सूरज तैयार बैठा है ढलने को
तुम्हारे लिए ये जहाँ नाप लेंगे
धरती तो क्या आसमान नाप लेंगे
लेकिन तुम्हारी ख़ामोशियों ने रोक रखा है
पैर तैयार है, कब से चलने को