आम आदमी हूं साहब।
आम आदमी हूं साहब।
वक्त से रोज लड़ता हूं।
अपनो के लिए रोज बहुत दूर तक चलता हूं।
सिर्फ आम आदमी हूं साहब।
अपने बुरे वक्त का भी सम्मान करता हूं।
महँगाई बहुत है थोड़ा सा सम्भल कर चलता हूं।
दो वक्त के भोजन के लिए मेहनत रोज ज्यादा करता हूं।
अपनो के आज को बेहतर कर दूं।
बस यही ख्वाहिश रखता हूं।
अपनी माँ को बड़ी ना सही।
लेकिन छोटी सी गाड़ी में घुमाने का शौक रखता हूं।
अपने सपनों के लिए नहीं साहब।
मैं अपनो के आज के अस्तित्व के लिए संघर्ष करता हूं।
बस इन कुछ ख्वाहिशों के लिए ही।
मैं बहुत रातों तक जगता हूं।
सिर्फ एक आम आदमी हूं मैं।
अपने वक्त से रोज लड़ता हूं।
