आँखें
आँखें
सनम मिलने चले आओ जहां हो !
सकूं दिल को बिना तेरे कहां हो
गया तू छोड़कर जब से अकेला
उदासी रोज़ तेरे बिन यहां हो
सताये याद तेरी इस क़दर है
निगाहों से हर पल आंसू रवां हो
न फैलेगी कभी बू नफ़रतों की
रहे चलती मुहब्बत की फ़िज़ां हो
मिली ऐसी जुदाई है किसी से
तन्हाई की जीवन में ही ख़िज़ां हो
टूटे दीवारें यहां तो नफ़रतों की
मुहब्बत का बना कोई मकां हो
दीवारें बीच नफ़रत की खड़ी है
सनम मैं हूँ यहां के तुम वहां हो
करे आज़म तारीफें और क्या अब
सनम तुम ख़ूबसूरत हो जवां हो।
आज़म नैय्यर सहारनपुर
उत्तर प्रदेश

