दुर्ग
दुर्ग
दुर्ग की प्रचीरे विमर्श करती होंगी,
स्मृतियों के गर्भ में भ्रमण करती होंगी।
महल आंगन सब जीवंत हो उठते होंगे,
रंग बिरंगे परिधानों में सब सजते होंगे।
रानियां वीरों की बातें करती होंगी,
अट्टालिका से पथ निहारा करती होंगी।
आंगन में गीत संगीत बजते होंगे,
महलों में जब सांझ दीप जलते होंगे।
प्रचीरों को याद आता होगा,
हर उत्सव में दुर्ग जगमगाता होगा।
होली पर टेसू के रंग पंखुड़ियों के संग,
झरोखों से सब पर बरसते होंगे।
दीपावली पर दिये कतारों में,
प्रचीरों पर झिलमिल जलते होंगे।
अश्व, गज, गौ सब सजते होंगे,
राजपरिवार तब विचरते होंगे।
गलियारों में प्रेम भी होता होगा,
पर पटल पर आवरण होता होगा।
सुख - दुःख, जन्म - मृत्यु का चक्र,
स्मरण हर बात का होता होगा।
आज का वर्तमान कल अतीत होगा,
प्राचीरों में विमर्श ये भी होता होगा।
जो लिखोगे तुम आज इसके पटल पर,
वही अतीत का कल झरोखा होगा।
