मेरी काव्य यात्रा
मेरी काव्य यात्रा
ज़िंदगी से मिले हरदम कड़वे अनुभव
बार-बार गिरकर ख़ुद को हरबार संभाला
अंतरात्मा से करती रहती थी मैं परामर्श
अकेलेपन में कागज़-कलम बने सहारा
विचारों के भँवर में कागज़ कश्ती बना
कलम पतवार बन तूफ़ाँ से किया पार
किनारे आकर शुरू हुई मेरी काव्य यात्रा
ख़ुदा की रहमत से जज़्बात उतरे कागज़ पर।