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Mohanjeet Kukreja

Drama Romance Fantasy

4.4  

Mohanjeet Kukreja

Drama Romance Fantasy

गले भी मिल लें...

गले भी मिल लें...

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मेरे जज़्बात की तपिश ने जो आग थी लगाई, किधर गई

आख़िर मेरे इज़हार पर जो मोहब्बत जताई, किधर गई


हुस्न के दीवाने थे हम, उन जलवों के कभी तलब-गार

नाज़-ओ-अदा मौजूद है, मगर वो अंगड़ाई किधर गई 


चाँद सा चेहरा था ओ मरमरी सा हसीन बदन उसका 

मर-मिटे थे जिस पर हम कभी, वो रानाई किधर गई


दिल धड़कता था मेरे नाम से, लरज़ जाती थी ज़ुबाँ भी

मेरा ज़िक्र भी था उसकी बातों में, शनासाई किधर गई 


अब गले भी मिल लें अगर तो कुछ बात नहीं बनती

छूने से क़रार आ जाता था, ऐसी मसीहाई किधर गई


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