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आँसू

आँसू

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सोचती हूँ, न बहे,

आँसू कभी इन आँखों से,

पलकों पर थमा देते हैं इन्हें,

कभी मिटाते हैं, हाथों से !


कभी आँखें ही करते हैं बंद,

मन का दुख छिपाने के लिए,

फिर भी बूँदे बरस आती हैं,

दिल का हाल सुनाने के लिए !


कभी तो लगता है,

ये बरसती बूँदे मिटाए नहीं,

क्योंकि, आँसू तो मिट सकते हैं,

पर यादें तो मिटती नहीं !


इन कीमती आँसुओं को,

कभी सज़ा भी देते हैं,

दुख का बन्धन जब छूट जाए,

तब रातभर हम रोते हैं !


जाने कितना समझाया इन्हें,

न बरसे कभी उजाले में,

साथ दें बस ये मुझे,

अकेलेपन के अँधियारे में !


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