बेड़ी
बेड़ी
मुट्ठी में पकड़ी है आज़ादी,
और आँखों में हैं कई सपनें,
हर चेहरे पर स्वतंत्रता झलक रही,
पर ये बेड़ी क्यों हैं मेरे पग में !
ये बेड़ी है गरीबी और अज्ञान की,
फिर भी जश्न मना रहा हूँ मैं,
तिरंगे को खरीदने वाले बहुत हैं आज,
स्वतंत्रता की खुशी बेच रहा हूँ मैं !
ना लिखना-पढ़ना जानूँ मैं,
ना मुझको है इतिहास पता,
कैसे लड़े थे वीर हमारे,
कोई मुझे भी सुनाये आजादी की कथा !
कैसे त्याग दिया अपने प्राणों को,
कैसे दी हसरतों की कुर्बानी,
कैसे खून बहाया अपना ?
जिसमें ख़त्म हुई थी जवानी !
यहीं सोच रहा हूँ मैं,
खुद को कोस रहा हूँ मैं !
सरेआम रस्ते पर मैं,
लोगों के पीछे दौड़ता हूँ,
तिरंगे के बदले में,
अपनी कमाई का पैसा माँगता हूँ !
ये कैसी कमाई हैं ?
तिरंगा तो हमारा अभिमान है,
शान से लड़े थे जो सैनिक,
उनकी तो तिरंगे में जान है !
आज मेरे अज्ञान से बड़ी,
ये मेरे दिल की भावना हैं,
मत कीमत करो तिरंगे की,
यही तो देश की प्रेरणा हैं !
आज़ादी तो आसान न थी,
ये बेड़ी थी गुलामी की,
देश की एकता ने ही तोड़ दिया इसे,
और भारत माँ को सलामी दी !
भारत की ये सफलता तो,
एक राष्ट्रीय त्योहार है,
एकता से किए गए हर कार्य में ही,
देश के दुश्मनों की हार है !
इतना तो जान गया हूँ मैं,
हर भारतवासी को तिरंगे का अभिमान हैं,
बड़े प्यार से खरीदते हैं लोग इसे,
और मनाते राष्ट्रीय त्योहार हैं !
तिरंगा बेचते-बेचते मुझे भी,
इसकी कीमत पता चली,
सिर्फ़ तिरंगा खरीदकर नहीं,
देनी पड़ती है अपने प्राणों की बली !
आज मेरे अज्ञान की बेड़ी,
मैं तोड़ना चाहता हूँ,
इस थोड़े-से ज्ञान के सहारे,
मैं कुछ बोलना चाहता हूँ !
मत बेचो यह लहराता तिरंगा,
सिर्फ़ दिल में रखना इसका ईमान,
मनाओ हर दिन स्वतंत्रता का जश्न,
तिरंगे में ही समर्पित हैं,
हमारी भारत माँ का सम्मान !
जय हिन्द!