बेटियाँ
बेटियाँ
बोझ नहीं होती
कभी बेटियाँ माता-पिता पर,
जहाँ जाती है वहाँ बनाती है
एक सुंदर,स्वर्ग-सा घर...
जन्म से पहले...और
जन्म के बाद...सिर्फ़
रुलाएगी आपको,
उसकी मीठी याद...
माँ की कोख में ही
वह सुरक्षित होती है,
नौ महीनों की जिंदगी ही
वह चैन की नींद सोती है...
बेटी पैदा होते ही
घर में खुशी छा जाती है,
घर के लोगों के चेहरे पर
झूठ-मूठ की हँसी आ जाती है....
चलती है, दौड़ती है
सारे घर पर कब्जा करती है,
अपने नन्हें से दिल में
माता-पिता का प्यार भरती है...
अपने छोटे-छोटे हाथों से वह
बचपन से ही खाना बनाती है,
लेकिन माता-पिता को तभी से
उसके दहेज की चिंता सताती है...
उसे भी लगता है
भाई जितना उसे भी प्यार मिले
फिर भी कहीं फ़र्क नज़र आता है,
जब बेटी यहीं पर और
बेटा लंदन जाता है !
माता-पिता की छत्र-छाया में
वह ऐसी ही बड़ी हो जाती है,
जितना मिले उसमें ही वह
अपनी जिंदगी सजाती है...
माँगना तो उसे
जरा भी नहीं आता है,
परिवार की खुशी और प्यार ही
उसे ज्यादा भाता है...
सपने तो उसके भी
आँखों में छा जाते हैं,
दिल ही दिल में रहते हैं
न कभी जुबाँ पर आते हैं...
उसकी मीठी बोली से
सारा घर खिल उठता है,
दहलीज़ जब करती है पार जाने ससुराल
तब माता-पिता का दिल टूटता है...
उसके जन्म से ही चिंता लगी रहती है
माता-पिता को उसकी विदाई की,
कदम घर से बाहर पड़ते ही
कीमत पता चलती है- बेटी की जुदाई की...
भले ही कितना भी हो
पिता को तज़ुर्बा दुनिया का,
अपनी बेटी से ही सीखते हैं वह
जीवन जीने का सही सलीका...
बेटी बड़ी हो जाए जल्दी
माँ की यहीं हसरत होती है,
माँ को भी तो काम से फुरसत
बेटी ही तो देती है...
बेटी ससुराल जाते ही
घर सूना-सूना हो जाता है,
कलेजे का यह टुकड़ा जब
अपने से पराया हो जाता है...
बेटी तो बेटी होती है
जो सबके भाग्य में नहीं होती,
सँभालकर रखना है यह फूल
जितना कीमती नहीं हीरा-मोती...
माना बेटी तो है पराया धन
फिर किस घर को वो अपना समझें ?
कई रिश्तों में ढूँढती हैं खुद को
संजोती हैं जीवन भर,
उन्हीं रिश्तों में समाए लम्हें...
मैं भी तो एक बेटी हूँ
जैसे आसमान में उड़ती पतंग,
ऐसे ही हर बेटी लड़ती है
अपनी जिंदगी की हर जंग...
