पत्थरों के दिल
पत्थरों के दिल
शानो शौकत से भरे जो घर मिले
पत्थरों के दिल वहाँ अकसर मिले
फूल जिनके हाथ में दे आये हम
आज उनके पास ही खंज़र मिले
ज़िंदगी से क्यूँ शिकायत हो भला
जब जहाँ में दिलनशीं मंज़र मिले
देश भर के जो दिलों को जोड़ दे
काश ऐसा भी कोई रहबर मिले
जो तरसता ही रहा इक बूँद को
क्या करे वो जब उसे सागर मिले
दर्द, आँसू, आह, बेचैनी, फ़ुगाँ
कब मुसाफिर को यहाँ कमतर मिले