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धर्मेन्द्र अरोड़ा "मुसाफ़िर"

Abstract Inspirational

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धर्मेन्द्र अरोड़ा "मुसाफ़िर"

Abstract Inspirational

ज़िंदगी का दस्तूर

ज़िंदगी का दस्तूर

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ज़िंदगी का बस यही दस्तूर है

हर ख़ुशी होती यहां क़ाफ़ूर है


शान में अपनी रहे डूबा सदा

लोग कहते हैं बड़ा मगरूर है 


जो नहीं लेता बुज़ुर्गों की दुआ

क़ामयाबी से हमेशा दूर है


हसरतों का कारवां पलता अगर

तीरगी मिलती वहां भरपूर है


मौसमी मंज़र हसीं जिसको मिले

मान इज़्ज़त के नशे में चूर है


सोचते थे मैं बड़ा बलवान हूं

वक्त ने उनको किया बेनूर है


बात ये ख़ुद को बताओ हर घड़ी

ऐ मुसाफ़िर तू नहीं मजबूर है।


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