धर्मेन्द्र अरोड़ा "मुसाफ़िर"
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आँखें चुरा रहा है।
नींदे उड़ा रहा है।।
मीठी अदा से यारों।
सब को लुभा रहा है।।
रब की अजीब माया।
रहमत लुटा रहा है।।
गूंगा भी आज देखो।
बातें बना रहा है।।
तारीख से मुसाफिर।
करता वफा रहा है।।
बंदगी
आंखें चुरा रह...
*क्यूँ*
आखिरी हक़ीक़त
धुंधली डगर
होली
कभी खु़दा से
हर दौर में......
खुदा का आसरा
ज़िंदगी का दस...