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धर्मेन्द्र अरोड़ा "मुसाफ़िर"

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धर्मेन्द्र अरोड़ा "मुसाफ़िर"

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आंखें चुरा रहा है

आंखें चुरा रहा है

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आँखें चुरा रहा है।

नींदे उड़ा रहा है।।


मीठी अदा से यारों।

सब को लुभा रहा है।।


रब की अजीब माया।

रहमत लुटा रहा है।।


गूंगा भी आज देखो।

बातें बना रहा है।।


तारीख से मुसाफिर।

करता वफा रहा है।।




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