गद्दार
गद्दार
तबाही के इस मंजर का मेरा देश हकदार न होता,
अगर गैरों के खंजर मे अपना कोई गद्दार न होता।
दर्द का समंदर और ये चीत्कार न होता
गीदड़ों ने किया छल से सिंह पर वार न होता।
टूटती चुड़ियाँ और सुबकता कोई परिवार न होता,
अगर कुटिल आतंक का मुखौटा पहरेदार न होता।
सबकी आँखों में दहकता ये अंगार न होता,
आस्तिन के सर्प ने किया अगर भरोसा तार-तार न होता।
देशद्रोहियों ने किया घिनौना ये व्यापार न होता,
तो तबाही के इस मंजर का मेरा देश हकदार न होता।