बूढ़ा इश्क
बूढ़ा इश्क
सोच समझ से परे लिया था मैंने एक रिस्क,
अनजाने में हुआ था मुझे बूढ़ा इश्क।
एक दफा की थी मैंने पुरानी मोहब्बत,
फिर धोखे में फँसी मेरी उलफत।
उसके धोखे से बहुत कुछ जान लिया,
इश्क करना खता है ये मैंने मान लिया।
तब मैंने मोहब्बत से अपना ध्यान हटाया,
नाम और शोहरत से बहुत पैसा कमाया।
मैं अपनी ही परछाईं से बातें करता हूँ,
तन्हा हूँ पर तन्हा रहने से डरता हूँ।
एक बात बताउं किसी से कहना नहीं,
इश्क उम्र के साथ बूढ़ा कभी भी हुआ नहीं।
कुछ दिनों पहले ही मुझे फिर से इश्क हुआ,
आखिरी बार मैंने किसी को पाने की की दुआ।
उसे पाने को दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कता है,
मानो कोई तोता जैसे पिंजरे में तड़पता है।
कल ही मैंने उससे प्यार का इज़हार किया,
मेरी बातों को सुनकर उसने इनकार किया।
कहने लगी उम्र दराज़ का ज़रा खयाल रखो,
६५ की उम्र है तुम्हारी ये ना भुलाया करो।
हाँ उसकी उम्र अभी भी कुछ पैतीस की है।
कौन कहता है मैंने मोहब्बत उम्र देख कर की है।
दिल लगाने में आज भी बड़ा ही रिस्क है,
फर्क नहीं पड़ता जवानी है या बुढ़ापे का इश्क है।