ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
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"ज़िन्दगी टूट कर बिखर गई है,
साँस भी सिमट कर सिहर गई है।
हर लम्हा बेदर्द-दर्द से भीगा है,
दूर-दूर तक साँझ बिखर गई है।
तक़दीर ने कुछ ऐसा गुल खिलाया था,
प्राणों की रग-रग सिहर गई है।
परछाइयों ने मन को घेरा है,
रोशनी की किरण बिखर गई है।