ज़िन्दगी की उधेड़बुन
ज़िन्दगी की उधेड़बुन
जैसे मनः स्थिति का सूक्ष्म निरीक्षण
नित उठते भावों के झंझावत
फिर होता परिस्थिति का परीक्षण
कभी सरल कभी विषम उलझन
बूझता पहेली मानुष हर कदम
कटु यथार्थ से रोज़ टकराते
संघर्षों और विरोधाभासों से खेलते
समेटते हुए वजूद अपना
लड़ रहा मनुष्य हर क्षण
व्यस्त और मस्त है फिर भी
सुलझाने ज़िन्दगी की उधेड़बुन