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Swati Grover

Abstract Romance Fantasy

4  

Swati Grover

Abstract Romance Fantasy

ज़िन्दगी की शाम

ज़िन्दगी की शाम

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मैं नहीं चाहती कि

जब ज़िन्दगी की शाम होने लगे 

तब तुम आओं

वक़्त लकीरे बनकर आँखों

के नीचे दिखने लगे


चेहरे पर झुरिया पड़ जाए 

और दर्पण मुझसे डरने लगे 

कापती उंगलियों दीवार का सहारा लेने लगे

लफ़्ज़ जुबां से दूर होने लगे

 परवाह भी बेपरवाह लगने लगे 


 मन की बात लबो पर जब आने लगे 

तब हम तुमसे हाथ छुड़ाने लगे

फिर सदा के लिए एक शून्य में विलीन हो जायेंगे 

एक-एक कविता, नज़्म तुम पढ़कर मुस्कुरा रहे होंगे

आँखों की नमी को आँखों में ही छुपा रहे होंगे


कद्र और सब्र तो वक़्त से सीख लो 

नहीं तो शिकवे-शिकायत रह जाएंगी 

वो मैं नहीं चाहती.......... 


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