यूँ हुआ
यूँ हुआ
ये न हुआ,
कोई मरियम जो हुआ।
मैं भी क्या हुआ,
ईसा न हुआ।
ग़म से ख़ाली जो हुआ,
फिर वो दिल न हुआ।
चिराग़ों से भी कहीं,
ज़ब़ते तपिश दूर हुआ।
न मिला चैनो अमन,
न कोई साथ हुआ।
पास आया भी जो,
जानिबे बाज़ार हुआ।
है आबाद मगर,
क्यों न गुलज़ार हुआ।
हक़ पे क़ायम तो था,
फिर भी शर्मशार हुआ।
बात करता रहा,
दिल से बेज़ार हुआ।
अपने जज़बातों पे,
न पहरेदार हुआ।
आज़माइशें कम हुई,
तो किससे एहतराम हुआ।
वजूदे ख़ुदा पे,
हर दौर में सवाल हुआ।
अक़्ल से ख़ारिज जब हुआ,
तू परेशां न हुआ।
सोचता बस रहा,
ख़ुदा पैकर न हुआ।
नज़्म खाली न गयी,
कोई तो निसार हुआ।
मुझको सूझा न कुछ,
जब वो तलबगार हुआ।