Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Kishan Negi

Tragedy Inspirational

4.5  

Kishan Negi

Tragedy Inspirational

ये कैसा सूनापन

ये कैसा सूनापन

1 min
298


शाम को जब भी 

थका हारा काम से घर लौटता हूँ

जाने क्यों घर खाली खाली-सा लगता है

एक अधूरेपन का अहसास होता है

शायद इसलिए कि अब माँ के बिना

घर का हर कोना सूना-सूना है

दीवारें किसी के इन्तज़ार में पलकें बिछाए बैठी हैं

दरवाजा आज भी आवाज़ करता है

जैसे माँ को पुकार रहा हो 

अधखुली खिड़कियाँ टुकुर-टुकुर बाहर झांक रही हैं

उनको यक़ीन है मालकिन लौट कर ज़रूर आयेगी

जो चला गया फिर कब लौटा है भला 

मगर बात ये उनको समझाए कौन

आंगन में खड़ी तुलसी भी अक्सर आंसू बहाती है

हर सुबह माँ जल जो चढ़ाती थी

सच घर का ये सूनापन

अब ज़िन्दगी की खामोशियों में समा गई हैं

अंतिम सांस तक शायद ये सूनापन भर न पाऊँ

दीवार पर लटकी वह मुस्कुराती तस्वीर

रात सोने से पहले पूछती हैं मुझसे

बेटा, खाना खा लिया है क्या

अपने चेहरे को चादर से ढककर

कुछ आंसू बहा लिया करता हूँ

जानता हूँ लौटकर नहीं आएगी

मगर फिर भी कभी अन्दर कभी बाहर

उसके होने का अहसास पल-पल होता है

कितनी रौनक थी उसके होने से

अब रौनक भी धूमिल हो रही है धीरे-धीरे 

 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy