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Khatu Shyam

Tragedy

4  

Khatu Shyam

Tragedy

व्यथा

व्यथा

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मैं पागल नहीं पर नजरो में सबकी पागल बनाई गई हूं,,

औरत हूं क्या तभी मैं हर कदम आजमाई गई हूं


दी जैसे मैने हर पल जैसे एक नई अग्नि परीक्षा ,,

इतनी क्यों मैं अपनो के हाथो ही सताई गई हूं।


जो हिम्मत कर आवाज उठाई कभी मैने हक के लिए ,,

 फिर वास्ता देकर बच्चो का क्यो अक्सर चुप कराई गई हूं।


इंसान होने का भी हक जैसे मुझे कभी मिला नहीं,

बिन मर्जी भी क्यों बिस्तर पर एक चादर की तरह बिछाई गई हूं।


जीते जी रिश्तो ने ही कत्ल कर दिया हो जैसे मेरा,,

जिंदा ही क्यों अपनों के हाथो मैं पल पल जलाई गई हूं।


खुश होकर चाहत जीने की हर शख्स की ही होती हैं,,

फिर क्यों इस तरह बिन गलतियों के मैं रुलाई गई हूं।


खिलते हैं गुलाब सबकी जिंदगी में यू तो कभी कभी,,

सारे हक छीन क्यों मैं गलती के जैसे मिटाई गई हूं।


परिंदों जैसे उड़ना चाहती थी मैं भी खुले आँसमान में,,

काट तम्मनाओं के पंख अपनों के हाथो भी क्यों गिराई गई हूं?


सब जीते अब अपनी मन मरजियो से इस जहान में,

मैं फिर क्यों अब भी सांस सांस को तरसाई गई हूं।



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