गुमनाम गली हूं मैं
गुमनाम गली हूं मैं
सबकी नजरों में बुरी हूं,
कभी पागल लगी किसी को तो,,
कभी किसी को खली हूं मैं।
मानो तो दोस्त हूं,
पर जो कहो दुश्मन तो,,
दुश्मन भी भली हूं मैं।
रोती बहुत हूं किसी के लिए अक्सर,
पर जानती हूं वो मेरा नहीं,,
फिर भी मोहब्बत के रास्ते पर तन्हा चली हूं मैं।
अहसास मेरी मोहब्बत का उसे नही,
पर चाहूं उसे सिर्फ उम्र भर,,
सिर्फ उसके नाम की एक गुमनाम गली हूं मैं।

