वो
वो
मेरा प्यार किसी की नफरत का मोहताज नहीं है
मेरा प्यार किसी के ओर के प्यार का , या
ना ही किसी के साथ का अभिलाषी है
यह तो झूला झूलते उस एक नादान -नन्हे ,
नटखट बालक की मधुर हंसी की तरह है
जो हर सवेरे सूरज की अनंत उम्मीदों से परिपूर्ण रौशनी में नहाकर
बगिया में खिलते -खिलखिलाते ,कभी यूं ही ठंडी हवा के मदमस्त झोंके से
अपनी ही धुन में लहराते पुष्पों की
लम्बी-सी कतार से गुलशन इस बगीचे में बिछी
हरी घनी कुशा सी पावन दूब पर लहलहाती ओस की नाज़ुक बूंदों को
अपनी मेहनत और जुनून के मोतियों में पिरोकर
उन्हें देखने वालों के ,
संग रहने साथ उनके बहने वालों के गले में
इन मोतियों का हार पहनाकर,
उनके हाथों की रेखा अपने हाथों से सजाकर
पाँचों उँगलियों का पंजा बनाकर
जीने की एक नई नवेली ऊर्जा
हर रोज़ उनकी झोली में गिराकर
उनके हर एक दर्द का मलहम बन
रेशम के कीड़े की तरह अपना सर्वस्व लुटाकर
फिर एक नई सुबह की नई ऊर्जा का स्रोत बनने
उसे एक नई ज़िन्दगी देने के अपने कर्तव्य-परायण का धर्म निभाने
परवरदिगार के प्रेम को फिर एक बारी सब के मानस पटल पर लिखने
प्यार की कलाकृति उनके हृदय की तख्ती पर उकेरने
निकल पड़ा है फिर रवि संग अपना फ़र्ज़ निभाने।
