विधाता तू ही बता.....
विधाता तू ही बता.....
कभी मुझमें आक्रोश की ज्वाला तो कभी भय का साया,
यूँ मिश्रित भाव ने है मुझे अब सदैव डराया।
मेरे अस्तित्व से खेलना ना जाने क्यूँ उन्हें भाता है,
और उसके बाद अगर जीवित रहूँ तो...
लांछन भी मेरे ही हिस्से में आता है।
ग़र मौत ही अपने दामन में मुझे सुला ले,
तब यहाँ राजनीति का पृष्ठ खुल जाता है।
मुद्दा बनाकर मुझे बार-बार भुनाया जाता है,
लेकिन मेरे हिस्से का सुकून कोई ना दे पाता है।
मुझमें बची कुछ धीमे-धीमे चलती साँसे...
फिर यह सोशल मीडिया छीन लेता है,
पर मेरी चीत्कार कोई नहीं सुन पाता है।
सियासत की भट्टी में फिर एक बार
मुझे झोंक दिया जाता है।
अरे, सुनो मेरे भाई-बहनों और शुभचिंतकों....
मैं एक लड़की हूँ बस यही मेरी पहचान है,
बात ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र की नहीं
एक बेटी के मान की है।
टूटती है मेरी हड्डियां पर दरिंदों की हवस ना टूट पाती है,
सोचती हूँ मैं भला, शैतान भी कहाँ इतनी हैवानियत
किया करते होंगे...?
लगातार मुझ पर अनेकों कई वार किए जाते हैं।
कभी राॅड, कभी चाकू तो कभी आग के हवाले होती हूँ मैं,
गैरों को तो छोड़ो, अपनों में भी सुरक्षित कहाँ हूँ मैं ?
विधाता तू ही बता......
कलयुग के इस इंसान को अब क्या नाम दूँ मैं ???
