व्हाट्सएप की वितृष्णा
व्हाट्सएप की वितृष्णा
व्हाट्सएप के ..रंगमंचों में,
एक परम्परा ..बन गयी है !
दूसरे के पोस्टों ..को पोस्ट,
करने में घमासान मच गई है !
पर हमें जब कोई यत्न से,
अपनी लिखी कृतियाँ भेजते हैं !
पढ़ना तो दूर की बातें रही,
शायद ही कोई आभार व्यक्त करते हैं !
मनन करना तो दूर..देखना तो दूर,
हम अंगूठे दिखा देते हैं !
बेफिजूल के पोस्टों को,
हम उत्सुकता से गले लगा लेते हैं !
आखिर कब तक हम उलझे रहेंगे
इन संकीर्णता के अंदाज से ?
इस तरह हम शायद ही
निकल पाए भ्रांतियों के जाल से !
