इस तरह हम शायद ही निकल पाए भ्रांतियों के जाल से ! इस तरह हम शायद ही निकल पाए भ्रांतियों के जाल से !
जलते हुए बदल जाती है न केवल काया। ये वक्त है जो उसकी नज़ाकत-नरमी को जलते हुए बदल जाती है न केवल काया। ये वक्त है जो उसकी नज़ाकत-नरमी को
विचारों का ज्वार भी जब उठता है दिल में तब बेहिसाब तबाही के निशां छोड़ जाते हैं विचारों का ज्वार भी जब उठता है दिल में तब बेहिसाब तबाही के निशां छोड़ जाते ह...
जीने के कुछ और पैंतरे हासिल हुए इस साल कोरोना में जितना रोना था रुलाकर ही गया जीने के कुछ और पैंतरे हासिल हुए इस साल कोरोना में जितना रोना था रुलाकर ही गया