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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy Others

4.5  

संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy Others

उनकी यादें

उनकी यादें

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उनकी यादें मन के कोने में

कहीं दुबककर सिमटी हैं,

कभी चुपके से लबों पे आतीं,

कभी आह बनकर छिटकी हैं।


कभी वो लम्हें जो संग गुज़रे थे,

अब ख़्वाबों में मेरे उतरते हैं,

कभी हँसी में आ झलकते 

कभी अश्कों में चुप चुप बहते हैं।


कभी पुरानी चिट्ठियों जैसे,

दिल के पन्नों में याद बैठी है,

कभी हवा के झोंकों संग,

चुपके से कानों में कहती हैं।


अब भी मैं हूँ तेरे पास

बस तूने देखना छोड़ दिया,

पर क्या कहूँ मैं तुमसे अब

दिल ने रोना सिसकना छोड़ दिया।


उनकी बातें उनकी हँसी

अब भी कानों में गूंजती हैं,

चांदनी रातों की प्यारी बातें 

बस अब आंखों में घूमती हैं।


ना पास हैं ना दूर गए तुम

बस वक्त की धुंध में खो गए,

एक साया सा बनकर साथ रहे

अब ना जाने कहां तुम खो गए।


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