धधकते हौसले
धधकते हौसले
आग वहीं अक्सर जलती है
जहां मन में सपने पलते हैं,
हर धड़कन में उफान लेकर
भूखे पथिक ही आगे बढ़ते हैं।
गीली लकड़ियों से बस
सिर्फ धुआं ही निकलता है,
इरादों में जिनके जान नहीं
वही बोझ के नीचे दब मरता है।
जिसे मंज़िल की प्यास हो
वो रातें आंखों में काटता है,
हर तूफ़ान से लड़कर ही
वो राह स्वयं अपनी बनाता है।
चट्टानों से टकराता है
तूफानों से लड़ जाता है,
हौसलों का दीपक लेकर
वो अंधियारा दूर भगाता है।
उम्मीदों का सूरज एक दिन
क्षितिज में उसके चमकेगा,
जब भीतर आग धधकती हो
हर बाधाओं को भी हर लेगा।
हौसलों की धार पत्थरों को
एक दिन उसके पिघला देगी,
संघर्ष की तपिश मंज़िल तक
उसको निश्चित पहुंचा देगी।
भीड़ में बेशक गुम है वो
पर शोला बनकर चमकेगा,
जुनून की लौ में तपकर वो
एक दिन कुंदन बनकर निकलेगा।
अपने कदमों के निशान वो
एक दिन आसमां कर देगा,
संघर्ष की एक मिशाल बनकर
वो एक नई इबारत लिख देगा।
