अडिग अपने कर्म पर...
अडिग अपने कर्म पर...
अडिग अपने कर्म पर
सच्चे अपने धर्म पर,
चलते हम सत्य मार्ग पर
हर युगों के रथ पर।
ना झुकते अन्याय के आगे
ना फंसते भय के जाल में,
सत्य हमारा शस्त्र बना
हर अंधकार के काल में।
संस्कृति की विरासत अपनी
जो विश्व को दिशा दिखाए,
वेदों की उस ज्योति से ही
हम हर पथ को जगमगाए।
ना द्वेष किसी मानव से
ना नफ़रत के बोल बोलते,
सत्य, सेवा बस धर्म हमारा,
यही सबसे हम मोलते ।
जो भूल गए अपनी माटी को
अब उन्हें जगाने आए हैं,
भारत की इस पुण्य धरा का
गौरव गान सुनाए आए हैं।
जो बांट रहे इस भारत भूमि को
उनको यही पैगाम हमारा,
टुकड़ों में अब न बंटेगा भारत
चाहे तुम जान लगा दो सारा।
हम शांति दूत हैं इस धरा के
विश्व बंधुत्व निभाएंगे,
पर छेड़ोगे गर मातृभूमि को
तो सिंह गर्जना दिखलाएंगे
भारत मां की संतानें हम
माटी की शपथ निभाएंगे,
जब तक तन में सांस धरी है
इस माटी के लिए लड़ जाएंगे
