बालक खुदीराम..
बालक खुदीराम..
आजादी का मतवाला निकला रण में
मां भारती का गीत गुनगुनाता था,
बांधकर कफ़न सर पर मौत का
वो फिरंगियों से भिड़ जाता था।
ना खुद की चिंता ना फिक्र अपनों की
बस गुलामी से उसे नफरत थी,
भारत मां के लिए बलिदान हुआ
जिंदगी जीने की कहां उसे फुर्सत थी।
आजादी की दिल में ऐसी लगन लगी
खुदीराम ने घर बार त्याग दिया,
क्रांति की मशाल लेेकर हाथों में
आंदोलन में बढ़चढ़ भाग लिया।
सोनार बांगला की प्रतियों को उसने
खुद ही घर घर तक पहुंचाया,
राजद्रोह का अभियोग लगा फिर
अंग्रेज़ो ने सलाखों के पीछे डलवाया।
स्वतंत्रता के इस रण में खुदीराम ने
मन कर्म वचन से संकल्प किया,
आखिरी सांस तक चैन से ना बैठूंगा
मां भारती को उसने नमन किया।
बंग भंग विरोध पर जब अंग्रेजों ने
भारतीयों का खूब दमन किया,
मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की क्रूरता का
बम चला कर उसने प्रतिकार किया।
विस्फोट में किंग्सफोर्ट बच गया
पर भाग्य लंदन का थर्रा गया,
धमाके की गूंज से दूर दूर तक
फिरंगियों का शासन डोल गया।
चारों ओर तहलका मच गया
गोरों ने खुदीराम को गिरफ्तार किया,
११ अगस्त १९०८ में भगवत गीता हाथ में लिए
खुदीराम ने स्वयं फांसी का वरण किया।
नाम अमर कर गया वो बालक
देकर हम भारतीयों को ये संदेश,
दिल में रखना सम्मान सदा देश का
चाहे रहो तुम दूर परदेश।
