तूफ़ान
तूफ़ान
बाद आज वो मिले
धड़कनों में जैसे अब भी,
जान बाकी हैं ऐसे लगा...
साथ में जब वो थे
कुछ भी न होकर भी,
'कुछ तो हैं' महसूस होने लगा...
सुलझा हुआ सा सब उलझ गया
जो होंठों तक न ला सकते,
वो सुनाई दे रहा था...
उम्मीद का तिनका
दिल पे थप थपा के,
दस्तक बज़ा रहा था...
दो गुमसुम दिल मचाने लगे
उस गुफ़्तगु-ए-शोर को,
ख़ामोश किया जा रहा था...
ऐवे ही बातों का रुख़ मोड़ के
पोशीदा चुप्पी को,
बखूबी ही छुपाया जा रहा था...
दूरियाँ कम न हो सकी
फिर भी हर इक पल,
क़रीब होने का सुबूत दे रहा था...
नज़रें मिलने से बची रही
क्यूँ कि हर साँस में,
चाहत जिन्दा होने का जज़्बा था...
अलविदा कहने को,
दिल डर सा गया
तो मुँह मोड़ के रुसवा हो गए...
तब से धड़कनों की रफ़्तार,
क़ाबू में कहाँ
कहीं रुक न जाए...
संज़ीदा-ए-आलम का क़हर
मुझे मुझ में ख़ुद को,
अब सहा न जाए...
क़यामत मुमकिन नहीं अगर
मेरी रूह की सिसक का,
उनको एहसास ही हो जाए.....

