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तुम मेरा सफ़र हो

तुम मेरा सफ़र हो

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वादियों के जहान में रहने वाली, क्या तुझे मैं याद नहीं 

ऐसा तो कोई लम्हा नहीं, जिसमें तू होती मेरे साथ नहीं

यह बात अलग है कि मोहब्बत मेरी इकतरफ़ा है

मगर यह क्या कम है कि अंदाज़ मेरा अलहदा है 

बहुत दिन हो गये हैं, ख़्वाब में भी तुम्हारा ख़्वाब आया नहीं

बिना बहाने के भी कभी-कभी मुलाक़ात हो सकती है, हैं ना !

न कोई तसव्वुर पे बंदिश, न कोई ख़यालों में जुंबिश

कोई तो इशारा दो, चाहे वो गुज़ारिश या हो वो बारिश

बेनज़ीर सी वो बातें, मुझे तो अब तक सब याद हैं

यह अलग बात है कि तुम्हें मेरी याद ही नहीं आती

न शाम में हो न सहर में हो, मालूम नहीं किधर को हो

आख़िर मैंने भी यह मान लिया, कि तुम मेरा सफ़र हो

मेरे दिल के घर में रहने वाली, क्या तुझे मैं याद नहीं 

ऐसा तो कोई पल नहीं, जिसमें तू होती मेरे साथ नहीं।


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