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ज़िंदगी लटकता हुआ इक आम है

ज़िंदगी लटकता हुआ इक आम है

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आज तू जिसके पीछे भाग रहा है

कल तू उससे दूर भागेगा


ज़िंदगी इसी दौड़ का नाम है

ज़िंदगी छलकता हुआ इक जाम है


ज़िंदगी को मुश्किल बनाने की क्या ज़रूरत

ज़िंदगी तो है खूबसूरत इसे चाहिए थोड़ी मोहब्बत


आज तू जिसे पाना चाह रहा है

कल तू उससे पीछा छुड़ायेगा


ज़िंदगी इसी होड़ का नाम है

ज़िंदगी चलता हुआ क़याम है


ज़िंदगी को भला समझने की क्या ज़रूरत

ज़िंदगी को तो है बस थोड़ा जीने की ज़रूरत


मगर ये बात हमें मौत के वक़्त समझ आएगी

ज़िंदगी तो ज़िंदगी है आख़िर एक दिन गुज़र जाएगी


आज तू जिसका होना चाह रहा है

कल तू उससे निज़ात चाहेगा


ज़िंदगी इसी हड़बड़ी का नाम है

ज़िंदगी लटकता हुआ इक आम है।


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