बारिश के भीतर कहीं
बारिश के भीतर कहीं
काग़ज़ की कश्ती है या बचपन की मस्ती है
बारिश के भीतर कहीं बादलों की आबाद बस्ती है
भिगो देती है जो तन को, भिगो देती है जो मन को
सावन बनाती है जो सावन को बारिश वो हस्ती है
बूँदों में इसकी ताज़गी है, आवारगी है, दिल्लगी है
फ़िक्र से कोसों दूर इसमें नई ज़िंदगी बसती है
प्यास को मिटाने का दावा करती रही है सदियों से
महसूस किया तो पता चला छुपी इसमें तिश्नगी है
समंदर के अंदर का गुबार समेट लेते हैं बादल
उसी गुबार के थमने पर अक्सर ये बरसती है
बारिश के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है
ज्यादा कुछ नहीं ये आबोहवा की मटरगश्ती है।