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RockShayar Irfan

Abstract

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RockShayar Irfan

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बसंत

बसंत

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कुछ वृक्ष सूखे हुए, फूलों से कुछ ढंके हुए 

ज़िन्दगी के मौसम को, यूं बयां करते हुए


सुख है सावन ऋतु, दुःख आये पतझड़ सा 

जीवन के प्रवाह को, यूं उज्जवल करते हुए


तितलियाँ बेठी फूलों पे, पत्ते यूँही देखते 

समय के खेल को, यूं स्वीकृत करते हुए


छाया देते पेड़ कहीं, उजड़े से ठूंठ कहीं है 

काल के चक्र को, यूं सत्यापित करते हुए


भांति भांति के पक्षी, घोंसला बनाते यहाँ 

प्रकृति कि सरसता को, यूं मंगल करते हुए


कीट पतंगों का डेरा, खिलती कलियो पर 

प्रेम के सौंदर्य को, यूं निर्मल करते हुए


कोयल कि कुहूँ कुहूँ, पंछियो का कोलाहल 

सृष्टि के सृजन को, यूं सजीव करते हुए


कुछ फूल खिले हुए, पत्ते क़ुछ सूखे हुए 

ज़िन्दगी के मौसम को, यूं बयां करते हुए।


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