तुम और मैं
तुम और मैं
तुम आये जीवन में बसंत जैसे
वो भी पतझड़ के बाद वाला
तुमने फिर से सीखा दिया मुझे
बार बार आईना देख खुद को संवार लेना
तुमने पेड़ों में जड़ों के अलावा भी
दिखलाये फूल मुझे
तुमने बेवजह खड़ा कर दिया मुझे
मेरी बालकॉनी में वो भी सुबह के वक़्त
अब अचानक जीभ नहीं जल रही कभी भी
तुमने दो घड़ी बैठ के चाय पीना सिखाया
तुमने फिर से मेरी कविताओं मैं भर दिया प्रेम
तुमने दे दिए ढेर सारे नए गीत
जिनमें जीवन संगीत था
तुम ले गए अपनी बातों में मुझे बादलों तक
बरसात के बिना भीगना सीखा दिया मुझे
इस सब के साथ तुमने सिखाये
थोड़े से झूठ, थोड़ा सा स्वार्थीपन
थोड़ी सी मस्ती, थोड़ा सा बचपन
तुम और मैं मिले नहीं अभी
पर लगता है तुम मुझ में रहने लगे हो