तर्पण
तर्पण
इंतजार है श्राद्ध पक्ष का, लाखों रुपए लुटा देंगे।
श्राद्ध में आएँगे पूर्वज, तो उनको तृप्त करा देंगे।
उन्हें करेंगे स्मरण एवं, सारे पकवान खिला देंगें।
जीते जी जो रिसते रहे घाव, उनको सहला देंगे।
मरते ही पिता के लगने लगी, सम्पत्ति की आस।
शरीर हमेशा रहे जर्जर, यह था सब का प्रयास।
केवल जीवित रहे, लाइफ सर्टिफिकेट देने हेतु।
करते रहेंगे मज़ा हरदम, वही इसका रहेगी हेतु।
जीते जी माँ की सारी, इच्छाओं का दमन करेंगे।
उन पर कर भीषण अत्याचार, मरणासन्न करेंगें।
अभी खाना
वस्त्र देने की, आवश्यकता ही क्या?
मरणोपरांत सम्पत्ति का, हिस्सा श्राद्ध में दे देंगे।
जीवित रहते माँ-बाप का, जीना दूभर हो गया।
मरने पे सारे घाटों पर, राख को छिड़कने गया।
कर के तर्पण तमाम, ऋणों से वंशज उबर गए।
कराके भोजन ब्राह्मण, एवं गाय को वे तर गए।
जैसे घने अँधेरे को दीपक, प्रकाशित कर देते हैं।
वैसे ही माता-पिता कठिनाइयों, से उबार देते हैं।
अगर माँ-बाप की आँखों में, आँसू तुम लाओगे।
जीते जी तो छोड़ो, मरकर भी चैन नहीं पाओगे।