विद्यालय में मेरा पहला दिन
विद्यालय में मेरा पहला दिन
आजकल बैठे बैठे ख्याल कभी ये आता है।
कहाँ गया वो बचपन मेरा जिससे मेरा नाता है।
कैसे दिन बीत गए वो, कहाँ गई नादानियाँ सारी।
कैसे मनमौजी थे हम भी, न कोई फ़िक्र न चिन्ता भारी।
उन दिनों की याद में, आज भी खो जाया करता हूँ।
कहाँ गए वो दिन, उन दिनों के लिए, आज भी तरसा करता हूँ।
वर्षों पहले जब नन्हा बस्ता टाँग कर, मैं शाला में आया।
बड़ा कोतूहल था, लेकिन, इतनी भीड़ देख मैं चकराया।
धीरे-धीरे मैं भी हो गया, उन शैतानियों में मशगूल।
यहीं मैं र
च बस गया, यहीं था मेरा घर और स्कूल।
धीरे-धीरे बड़े हुए, तो उन नैतिक मूल्यों तक से, किनार किया।
'मैं' के आगे अभिभावक, और शिक्षकों तक को
बिसार दिया।
सब तो ऐसे नहीं हैं, लेकिन अधिकतर ऐसे होते हैं।
जो सबका ख्याल न रखते, केवल टाइम पास करते हैं।
लेकिन इस सुनहरे अवसर को, अब न पा पाएँगे।
जो बीत गया सो बीत गया, उसे वापिस न ला पाएँगे। ।
आजकल बैठे बैठे ख्याल कभी ये आता है।
कहाँ गया वो बचपन मेरा जिससे मेरा नाता है।