ज़िंदगी का खेल
ज़िंदगी का खेल
हर कदम संघर्ष होती है ज़िन्दगी,
कभी धूप कभी छाँव होती है ज़िन्दगी।
संसार है मृग-मरीचिका,
तुम लक्ष्य से भटक न जाना,
आकर्षित होकर इसकी,
रागनियों में तुम डूब न जाना,
शक्ति व सामर्थ्य से इच्छाओं के,
महामेरु पार कर जाना।
क्योंकि जीवन है आशा,
तो आशाओं का प्रतिफल होती है ज़िन्दगी
कभी धूप कभी छाँव होती है ज़िन्दगी।
करोगे अपूर्व कार्य तो युगों तक,
अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में पाओगे।
यदि प्राणांत हो गया तो क्या ?
विश्व विजय पताका लहराओगे ,
संघर्ष ज्वाल में जल,अंतरशक्ति से,
स्वर्णिम भविष्य पाओगे।
क्योंकि अंतरशक्ति है बल तो,
संकल्पों से स्वर्ग होती है ज़िन्दगी
कभी धूप कभी छाँव होती है ज़िन्दगी।