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Vaishno Khatri

Tragedy

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Vaishno Khatri

Tragedy

सालियान

सालियान

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एक दिन जब वे खेतों में काम कर रही थीं, तभी उनके गांव का एक युवा चिल्लाता हुआ बोला वे तुम्हारे पिता को पीट रहे हैं। वे हमारे घरों में को भी आग के हवाले कर रहे हैं। ब्रिटिश-राज विरोधी और आजादी के समर्थन में होने वाली बैठकों पर ब्रिटिश सरकार सख्त कार्रवाई कर रही थी। जिन्होंने ब्रिटिश सरकार की बात को मानने से इनकार किया उन पर भी कार्यवाही हो रही थी। 

वो सालिहान गांव की ओर दौड़ीं। उनके पिता जी खून से लथपथ जमीन पर पड़े थे। उनके पैर में गोली लगी थी।

वे आपा खोकर बंदूकधारी अधिकारी से जंगली जानवर के हमले से बचनेवाली लाठी लेकर भिड़ गई।

उनको देख 40 अन्य महिलाएँ ने भी बाकी हमलावर दस्ते को लाठियों से पीटना शुरू कर दिया और बदमाशों को दूर सड़क के किनारे तक खदेड़ा फिर उसे पूरे गांव में दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। आज भी वो पुरानी यादें ताजा होकर क्रोध के मिश्रण के साथ बाहर निकलती हैं।

उसके बाद वे अपने पिता को उठाकर उस जगह से दूर ले गईं। हालांकि बाद में उन्हें एक दूसरे आंदोलन की अगुवाई करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। इस इलाके में ब्रिटिश-राज विरोधी आंदोलन को संगठित करने में कार्तिक सबर की मुख्य भूमिका थी। देमाथी देई सबर अपने गांव के नाम की वजह से ‘सालिहान’ के नाम से भी जानी जाती हैं।

उनकी बड़ी बहन भान देई और सबर समुदाय की दो अन्य आदिवासी महिलाएं- गंगा तालेन और साखा तोरेन को गिरफ्तार कर लिया गया था। वे सभी अब इस दुनिया में नहीं हैं। अब वे कमज़ोर हो गईं हैं। वे पहचान नहीं पाती हैं।

उनके गांव के बाहर के ज्यादातर लोगों ने उन्हें भुला दिया है। वो बारगढ़ जिले में बहुत गरीबी की हालत में रह रही हैं। उनके पास संपत्ति के नाम पर केवल एक रंग-बिरंगा सरकारी प्रमाणपत्र था, जिसमें उनकी बहादुरी को मान्यता दी गई थी। उसमें भी उनके पिता के बारे में लिखा है उन्हें न तो कोई पेंशन मिल रही है, न ही केंद्र या राज्य की ओडिशा सरकार से कोई मदद।


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