भारतम्बा
भारतम्बा
मैं हूँ भारत माता, और भारतम्बा भी कहलाती हूँ!
सारी सृष्टि भरपूर खुशियों से, पोषित कर जाती हूँ
एकाग्रचित्त होकर मन व इंद्रियों को, वश में करते थे
जग को अनुभवों के सन्देशों से, भावविह्वल करते थे
भारत में करके ज्ञानार्जन, छात्र सारे विश्व में छा जाते थे
जिज्ञासा हो जाए शांत, जगत में ऐसा ही ज्ञान बरसाते थे
अनेकों वर्षों से मैं परतन्त्रता की, जंज़ीरों में थी जकड़ी
वीर सपूतों ने देकर जान कड़ी जंज़ीरों से, दिलाई मुक्ति
अब कोई भी दीन-हीन, भूखा और बेसहारा नहीं रहेगा
दृढ़ हाथों से गौरवपूर्ण अतीत का, भविष्य बदलेगा
सारे स्वतंत्र और समान होंगे, सब में भाईचारा होगा
सारी वसुधा होगी अपना कुटुंब, सारा विश्व प्यारा होगा।