फिर भी मैं पराई हूँ
फिर भी मैं पराई हूँ
अच्छाई की देती संदेश
न आकार न कोई भेष
सभी के चाहत में रहती
सभी के हृदय में बसती
करती सबकी भलाई
फिर भी मैं पराई हूँ,
मंदिरों में राज प्रसादों में
रहती सभी के यादों में
करता मेरा जन गुणगान
बढ़ाते अपना मान सम्मान
जन-मन उर में समाई
फिर भी मैं पराई हूँ,
बूरे कर्म को ढकता मुझसे
सर्वत्र उपदेश देता मुझसे
शौर्य गाथा गाता भी है
प्रतिमान कहीं दिखाता भी है
हर समय साथ निभाई हूँ,
फिर भी मैं पराई हूँ,
मानव का चंचलता भी हूँ,
खुशियों का चपलता भी हूँ,
सुख संतोष है मेरे पास
सभी को रहती मुझसे इस
खुशी भरा गीत मैं गाती हूँ,
फिर भी मैं पराई हूँ,
निर्णय लेने में मुझे बुलाता
निष्पादन कार्य कर भगाता
बहुत है मेरी दुख भरी कथा
क्या है भविष्य मेरा नहीं पता
सत्य की मैं परछाईं हूँ,
फिर भी मैं पराई हूँ।