जब चला करती है
जब चला करती है
मन्द पवन के झोके जब-जब चला करती है,
खेतों में फसलों से लिपट जाया करती है।
हवा ने उस लगे फसलों का स्पर्श पाकर,
फसल के बदन को झकझोर दिया करती है।
हवा को आते ही फसलों का सिहर उठना,
फसल उसके आगोश में स्वयं आ जाती है।
होता है दोनो का मिलन खुले वातावरण में,
प्रकृति के गोद में अठखेलियाँ खेल जाती है।
थोड़ी देर बाद दोनो एक दूजे को भूल जाते हैं
धीरे-धीरे खुशी भरे माहौल को छोड़ जाते हैं।
अपनाते है अलगाव तन मन को बिखेरकर,
कुछ समय का स्पर्शानुभूति बाकी रह जाती हैं।