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मैं बहुत उदास हूँ

मैं बहुत उदास हूँ

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क्या अब मेरे,

सुख भरे दिन नहीं लौटेगें?

क्या अब मेरे कर्ण ,

उस ध्वनि को नहीं सुन पायेगें?

क्य अब मेरी हँसीं,

उस हँसीं में नहीं मिल पायेगी?

क्या अब कोई,

मुझसे यह नहीं कहेगा

ओ प्रिय ! तुम अकेले कहाँ हो?

मैं भी तेरे साथ में हूँ।


यदि मुझमें यह प्रवृत्ति अनवरत है

तो इसलिए कि

हो सकता है कोई मेरे जैसा

उदास, मनमारे हुए

आने वाले कल में आए

और मेरे इस उदासी भरी जिन्दगी में,

कोई संगीत सुनाकर,

हो सकता है दीप जलाये

और दुबारा यही बात कहे

ओ प्रिय ! तुम अकेले कहाँ हो?

मैं भी तेरे साथ में हूँ।


दिन ढल चुका है

शाम हो चुकी है

पंछी अपने बसेरे की तरफ लौट रहे हैं

क्षितिज में

धुन्ध का पहरा हो रहा है

सामने एक नदी दिख रही है

उसमें लहरें चल रही हैं

जो बहुत उदास है'

मैं बहुत उदास हूँ।


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