देश की खातिर
देश की खातिर
पापा तुमने देश की खातिर, जीवन को कुर्बान किया।
प्रतिमा आपकी बनवा कर, लोगों ने बहुत सम्मान दिया।
माता को अभिमान आप पर, हमको भी अभिमान है।
पापा आप के शौर्य से हम लोगों का भी कुछ नाम है।
एक बात हम समझ न पाते, क्या सरकारें सोती हैं?
जिंदगी हमारी राहों में, क्यों पल पल काँटे बोती है।
टपक रही है छत घर की, पैसों का कोई जुगाड़ नहीं।
हम आगे पढ़ना चाहते, पर फीस का कोई जुगाड़ नहीं।
माँ कहती थी कि नेता, जीवन भर पेंशन पाते हैं।
चाहे केवल पाँच वर्ष वो, जनता को बहकाते हैं।
नाम है सेवा करने का, पर मेवा माल उड़ाते हैं।
जनता के ही पैसों से, गुलछर्रे खूब उड़ाते हैं।
मुफ्त में बिजली पानी मिलता, टेलीफोन सुविधाएँ भी।
मुफ्त में करते एक साल में, कई हवाई यात्राएँ भी।
देश पे जो कुर्बान हो गए, उन्हें पेंशन मिले नहीं।
न ही मुफ्त में बिजली पानी, छोटा सा आवास नहीं।
वीर पिता के पुत्र हैं हम, क्यों हमको यह अधिकार नहीं?
सरकारों ने इन मुद्दों पर, किंचित किया विचार नहीं।
अच्छा होगा इनके लिए भी ऐसा एक कानून बने ,
पाँच वर्ष के लिए सीमा पर, हो तैनाती इनकी भी।
मुफ्त की बिजली मुफ्त का पानी, क्यों उनको कुछ मुफ्त मिले?
यदि मुफ्त उनको मिल सकता, हमको भी अधिकार मिले।
लेकिन ऐसे मुद्दों पर ,नेताओं के मुँह रहे सिले।
अपने हित की बात हुई तो, सबके सुर तब एक रहे।
देश के हित में अपनी ढपली,अपने- अपने राग रहे।
क्या उनका यह फ़र्ज नहीं है, जनहित के कुछ काम करें?
अपनी सांसद निधि से, अपने क्षेत्र का तनिक विकास करें?
जो सुविधाएँ उन्हें मिलती हैं, सैनिक को भी वही मिलें।
इतना भी यदि नहीं मिले, तो इतना तो हो सकता है,
रोटी कपड़ा मकान और शिक्षा जैसी सुविधाएँ मिलें।
स्वाभिमान से जी पाएं, हमको भी यह अधिकार मिले।
