हिलोरें ले रहा है मन
हिलोरें ले रहा है मन
गगन में मेघ छाए हैं, हिलोरें ले रहा है मन।
महीना आया सावन का , कहाँ हो तुम मेरे साजन?
बाग में पड़ गये झूले, बड़ा दिलकश नजारा है।
कुहनियों तक लगा मेंहदी, तुम्हें हमने पुकारा है।
तीज का सज गया मेला, सभी ने मेंहदी लगवाई।
सोलह श्रृंगार करके बह रही है आज पुरवाई।
बजाई प्रकृति ने शहनाई, गाई झूम कर कजरी।
झूम कर बादलों ने भी, बहाई खूब ही बदरी।
सावन में पिया, जल रहा है जिया।
यूँ न जी को जला, अब तो जल्दी से आ।
ऐसी मस्तानी रुत रोज आती नहीं।
बादलों की छटा, ऐसी छाती नहीं।
दिल आहें भरे और पुकारे पिया।
जले है जिया, अब तो आ जा पिया।

