व्यंग्य - जल संरक्षण
व्यंग्य - जल संरक्षण
जल संरक्षण की चर्चा परिचर्चा
आज कोई नई बात तो नहीं,
यह और बात है कि हमने, आपने
इस पर कभी गौर किया ही नहीं।
जब गौर ही नहीं किया
तब गंभीर होने का प्रश्न ही कहाँ उठता है?
वैसे भी कौन सा मैं या मेरा, आपका परिवार
पानी के लिए तरसता है।
चलिए कोई बात नहीं ये तो बहुत अच्छा है
कि आपने जल संकट नहीं झेला है।
पर इस गुमान में न रहिए जनाब
क्योंकि इसका संकेत दिल्ली में मिल गया है।
आने वाले समय में इसका विस्तार होता जायेगा
बूंद बूंद पानी के लिए तरसते लोगों का
जहां तहां मेला दिख ही जाएगा,
इंतजार की जरूरत नहीं है
धरती के लापरवाह मानवों
वह दिन भी कल ही दिख जाएगा,
हम सबका यह सपना जल्द ही साकार हो जायेगा।
इसके लिए ही तो हम आप सब
जल का भरपूर दोहन, दुरुपयोग कर रहे हैं,
प्राकृतिक जल स्रोतों के अस्तित्व से खेल रहे हैं
धरती के गर्भ से जल की एक एक बूंद सोखकर
उसे बाँझ करने की जैसे कसम खा चुके हैं।
अच्छा होगा अब
ज्यादा सोच विचार न कीजिए
जल संरक्षण कल से नहीं, आज से और अभी से
अपने और अपने घर परिवार से ही शुरू कीजिए,
फिर औरों को नसीहत देने का बीड़ा उठाइए।
वरना बहुत देर हो जायेगी,
जल के लिए भविष्य के युद्ध की आहट
वास्तव में कल के बजाय आज ही शुरू हो जायेगी।
तब हम आप सब क्या करेंगे?
जल संरक्षण करेंगे, अपने प्राण बचायेंगे या युद्ध करेंगे?
या आज की हठधर्मिता पर पश्चाताप करेंगे?
क्या करेंगे इस पर विचार कीजिए
किसी और या सरकार के भरोसे
जल संरक्षण की जिम्मेदारी मत छोड़ दीजिए।
बिना किसी तर्क वितर्क, वाद प्रतिवाद,
आरोप प्रत्यारोप के कमर कस लीजिए।
कल भी जिंदा रहना चाहते हैं तो
जल संरक्षण की जिम्मेदारी खुद ही उठाइए,
वरना जल के अभाव में मरने को
कल नहीं आज ही तैयार हो जाइए,
और अपनी हर जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लीजिए,
मेरी अग्रिम बधाइयां शुभकामनाएं
आज ही स्वीकार कर लीजिए,
किसी और पर अब न कोई एहसान कीजिए।