हां माना !!
हां माना !!
हां माना की अब टूट चुका है तू
अपनी ही किस्मत से रूठ चुका है तू
जिंदगी की डोर से कट गया है तू
पर याद रख जिंदा है तू
जिसने कभी न मानी हार वो परिंदा है तू
माना की जख्म बहुत गहरा है
चारों ओर दुख दर्द घनेरा है
पर तू खुद को पहचान ,
बड़ा बहादुर शेरशाह है तू
जो कभी न बिखरे वो आसमां है तू
तेरे ज़िद के आगे तो वो नदी नतमस्तक ,
गुरूर जिसे अपनी विकारलता का।।
तो अब कदम बढ़ाने से क्यों डरता है ????
क्या हो गए चोटिल तेरे पैर
क्या कट गई सारी उंगलियां
या की हो गया पूरा देह छल्ली
या है शक तुझे खुद की क्षमता है
या डरता है दुनिया वालों की बातों से...
चल अब छोड़ इन खयालों को...
देख दूर वहां ......
बुला रही तुझे मंजिल तेरी
माना की है रात अंधेरी और संघर्ष घनेरी
पर याद रख की तू भी है एक योद्धा
जिसने न जाने कितने युद्धों को जीता है।
भले रणभूमि नहीं पर मनोभूमि में तो सही.....
है ये तुझे भी मालूम की पाने को कुछ खोना होता है
तो त्याग करने से क्यों डरता है
जरा गौर कर उस नदी पर जिसने
न जाने कितने राज पाठों का किया है त्याग....
तब जाकर मिला उसको सागर का नाम....
उस मीन को सब आसानी से लेते है दबोच
जो रह जाता है पोखर में करके संकोच.....
मन बड़ा है मतलबी ,
चाहे है बस आराम
पर जिसने है इसको जीता ,
उसी को करती दुनिया सलाम
तू भी अब उठ जा....
मन के मारे मत बैठ,
जीवन में कुछ करना है, तो
माथे पे धरकर हाथ मत बैठ।
क्यों डरता है जीवन में आगे बढ़ने से,
हां, माना की पुराना जख्म अभी भरा नहीं
डरता है मन और डगमगाते है कदम।
पर याद कर वो बचपन के दिन,
जहां लगता था डर और डगमगाते थे कदम,
पर देरी थी तो बस करने की शुरुआत।।
तो चलो वो किस्सा फिर दोहराते है,
फिर से डरते हुए और डगमगाते ,
लेकिन कदम बढ़ाते है।।
और हो जाते है तैयार करने को सामना
हर उसका जो रास्ते में बाधा बनकर आएगा
याद रख एक समय तेरा भी आएगा।।।
