खामोश निगाहें
खामोश निगाहें
पलकों की छांव में, रंगों के बहाव में,
आंसू भरी नदियों की निश्छल राह में,
साँसों में जब भरती हूँ हवाएं,
बहुत कुछ कहती है खामोश-निगाहें।
खामोशी में कभी सांवले सपनों की याद सताती है।
तुमसे जुदा हो मेरे पास, बस रेत ही रह जाती है।
खामोशी में ही याद आती है तेरी वो बाहें।
पढ़कर देखो, कहती है क्या खामोश-निगाहें।
जब भी आंखों से, आंसू के मोती गालों से होकर गिरते है, ख्वाबों की माला पिरोती हूँ ,
जब जब मैं रोती हूँ, तेरी बस यादों से
मैं भरती हूँ आहें, रो-रोकर सुख गयी मेरी खामोश-निगाहें।
ना ही ये कुछ कहती है, केवल चुप ही रहती है।
रब से ये करती है गुज़ारिश,
हो इस बार खुशियों की बारिश।
पर सूखे रेत में बस गम को सहती है,
खामोश-निगाहें बहुत कुछ कहती है।

